भारतीय क्रांति की एक अति रोमांचकारी व साहसिक घटना.
१८ अप्रैल १९३० को चटगाव कांड(क्रांतिकारियों ने शस्त्रागार पर हमला कर दिया था.) के बाद सारा बंगाल क्रांति की ज्वाला से धधक उठा। वहीं अंग्रेजो ने भी एक एक व्यक्ति पर नजर रखनी शुरू कर दी,तथा क्रांतिकारियों के दमन की प्रक्रिया तेज कर दी। २४ दिसम्बर १९३० को एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरी अंग्रेजी सत्ता को झकझोर कर रख दिया।
पूरे विश्व का ध्यान इस घटना ने अपनी और खीच लिया। क्यों कि इस घटना को अंजाम देने वाली १४ वर्षीय दो मासूम स्कूली छात्राएं थी। जिनके नाम थे शान्ति घोष व सुनीति चौधरी। चट्गावं कांड के बाद पूर्वी बंगाल में प्रय्तेक नागरिक को परिचय पत्र दिया जाने लगा। किसी भी व्यक्ति से कहीं भी परिचय पत्र माँगा जा सकता था। ऐसा न करने पर गोली तक मारने के भी आदेश थे। क्रांतिकारियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना बहुत ही कठिन हो गया था।
इतनी कठोर व्यवस्था होने पर भी त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट को जान से मरने के पत्र मिल रहे थे। क्यों कि परिचय पत्र वाली व्यवस्था में उसका भी बड़ा हाथ था। मजिस्ट्रेट स्तिवेंशन की सुरक्षा बहुत ही कड़ी कर दी गई।स्तिवेंशन ने एक प्रकार से अपने को नजरबन्द कर लिया था।
२४ दिसम्बर १९३० को देश भक्ति की प्रेरणा से वे दो छोटी बालिका मजिस्ट्रेट के बंगले पर पहुँची। गेट पर सिपाही ने रोककर आने का कारण पूंछा। इस पर उन छात्रायों ने कहा की लड़कियों की तेराकी प्रतियोगिता है।साहब से प्रार्थना पत्र पर साइन कराने है कि उस दिन वहां से कोई स्टीमर और नौका न निकले। लड़कियों की भोली सूरत देखकर सिपाही ने स्टीवेंसन से फोन पर बात की ,स्टीवेंसन ने दोनों लड़कियों को अन्दर बुला लिया। आगे जासूसी विभाग के लोगो ने रोककर पूछताछ की।स्टीवेंसन अपने कमरे से बहार आया और उनके प्रार्थना पत्र को देखते हुए कहा कि ये कार्य तो पुलिस का है,में इसको पुलिस ऑफिसर को फोरवर्ड कर देता हूँ।लड़कियों ने कहा ठीक है। जैसे ही मेज पर पत्र रखकर उसने साइन करने शुरू किए,दोनों भोली भाली लड़कियों ने माँ दुर्गा का रूप धारण कर लिया और तुंरत पिस्तोलें निकली और ५-५ गोलियां मजिस्ट्रेट पर बरसा दी।
जब तक कोई समझ पाता स्टीवेंसन धरती पर गिर चुका था और दम तोड़ दिया था।शान्ति व सुनीति ने अपनी-अपनी पिस्तोलें फैक दी और वन्देमातरम के नारों से मजिस्ट्रेट का बंगला गूंजा दिया।दोनों को बंदी बना लिया गया। नाबालिक होने के कारण दोनों को काले पानी की सजा दी गई।रिहा होने के बाद वो कहाँ गई ,उनका क्या हुआ,इस बात का विवरण मुझे नही मिल पाया है।इन १४ वर्षीय लड़कियों के कारनामे से पूरा देश रोमांचित हो गया था।
शान्ति घोष व सुनीति चौधरी भारतीय क्रांति की सबसे छोटी उम्र की क्रांतिकारी थी। इनके बलिदान को सत्ता भुनाने वाले लोगो ने व्यर्थ कर दिया। छोटे छोटे बच्चों को बचपन से ही गाँधी को बापू व नेहरू को चाचा बताकर रटवाया जाता है। परंतु ऐसी क्रांतिकारी लड़कियों को इतिहास से भुला दिया जाता है।हमारे बच्चों को अगर ऐसे क्रांतिकारिओं का भी इतिहास में पढाया जाता,तो हमारी आने वाली पीढी का भविष्य उज्ज्वलता के शिखर पर होता,और उन्हें भी पता चलता कि देश गाँधी की अहिंसा से नही बल्कि ऐसे बलिदानों से स्वतन्त्र हुआ है।
Tuesday, October 27, 2009
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